अन्ना हजारे की कलम से...
लाखो लोगों के बलिदान के बावजूद देश में सही आजादी ना आने के कारण
आजादी की दुसरी लडाई लडनी होगी।
अंग्रेजोंका जुलुम, अन्याय, अत्याचार, सहन करने की देश के जनता की सहनशिलता खत्म होने के
कारण जुलमी अंग्रेजों को इस देश से निकालने के लिए और जनता का, जनताने, जन सहभाग
से चलाया तंत्र जनतंत्र (लोकतंत्र) देश में लाने के लिए देश की जनता ने 1857 से आजादी की लडाई शुरु की थी। इस लडाई में शहीद भगतसिंग, राजगुरु, सुखदेव जैसे लाखो शहीदोंने बलीदान किया। कई लोगों को सशक्त कारावास की सजा भुगतनी पडी। कई लोगों को भूमीगत रहकर अनंत हाल अपेष्ठा सहन करनी पडी। नब्बे साल की प्रदीर्घ लडाई के बाद अंग्रेज को इस देश से जाना पडा और हमारा देश आजाद हुआ।
1947 साल में अंग्रेज देश से चला गया। हमे आजादी मिली लेकिन जनता का, जनताने, जन सहभाग से चलाया जनतंत्र (लोकतंत्र) देश में आया नही। पक्ष और पार्टीतंत्र ने जनतंत्र को देश में आने नही दिया। लोकतंत्र न आने के कारण आजादी के 68साल में वही भ्रष्टाचार, वही गुंडागर्दी, वही लुट, वही दहशतावाद दिखाई दे रहा है। प्रश्न खडा है कि, अंग्रेज इस देश से जा कर क्या हुआ? सिर्फ गोरे लोग इस देश से गए और काले लोग आ गए।
पक्ष और पार्टीतंत्र ने देश मे जनतंत्र को आने ही नही दिया। 1949 में भारतरत्न आदरणीय बाबासाहेब आंबेडकरजी ने हमारे देश का सुंदर संविधान बनाया। उस संविधान में पक्ष और पार्टी का नाम कही पर भी नही है। 26 जनवरी 1950 में हमारे देश में प्रजा की सत्ता आ गई। प्रजा इस देश की मालिक बन गई। जिस दिन जनता इस देश की मालिक बन गई उसी दिन सभी पक्ष और पार्टीयां बरखास्त होनी चाहिए थी। हमारा संविधान पक्ष और पार्टी को अनुमती नही देने के कारण सभी पक्ष पार्टीया बरखास्त होनी चाहिए थी। इसलिए महात्मा गांधीजीने कॉंग्रेसवालों को कहा था अब जनता देश की मालिक होने के कारण और संविधान में पक्ष और पार्टीतंत्र का नाम ना होने के कारण कॉँग्रेस पार्टी बरखास्त किजीए।
हमारा संविधान यह कहता है कि भारत मे रहनेवाला, जो भारत का नागरिक है और जिसकी उम्र 25 साल हो गई है ऐसा वैयक्तिक चारित्र्यशिल पक्ष और पार्टी विरहीत नागरिक लोकसभा का चुनाव लड सकता है। और भारत में रहनेवाला भारत का नागरिक जिस की उम्र 30 साल कि हुई है ऐसी चारित्र्यशिल वैयक्तिक व्यक्ती जो पक्ष-पार्टी विरहीत राज्यसभा का चुनाव लड सकती है। संविधान में पक्ष और पार्टी का नाम ना होने के कारण पक्ष और पार्टीयों के समुह को चुनाव लडने की अनुमती नही है। आजादी के बाद देश में 1952 में पहिला चुनाव हो गया। इस चुनाव में संविधान के मुताबीक पक्ष और पार्टीयां बरखास्त हुई नही। संविधान ने पक्ष और पार्टीयों को चुनाव कि अनुमती ना देत हुए भी पक्ष और पार्टीयोंने घटनाबाह्य चुनाव लडे। 1952 में जब घटनाबाह्य चुनाव पक्ष और पार्टीया लड रही थी उस वक्त तत्कालीन चुनाव आयोग ने आपत्ती उठाना जरुरी था।
चुनाव आयोग ने आपत्ती ना उठाने के कारण 1952 से ले कर आज तक पक्ष और पार्टीयां घटनाबाह्य चुनाव लड रही है। घटनाबाह्य चुनाव के कारण पक्ष-पार्टीयों में सत्ता स्पर्धा शुरु हो गई। हर पक्ष-पार्टी सोचने लगी की येन-केन प्रकार से कुछ भी करना पडे अपनी पार्टी चुनाव में चुन कर तो आना ही है और सत्ता काबीज करनी है। चुनाव लडने वाला उम्मीदवार गुंडा है, लुटारु है,भ्रष्टाचारी है, दहशतवादी है यह पार्टी के नेता को पता है लेकिन उनके पिछे वोटोंका गठ्ठा है इसलिए ऐसे दागी लोगों को भी पक्ष और पार्टीयों के तरफ से चुनाव का तिकीट देना शुरु हो गया और संसद जैसे लोकशाही के पवित्र मंदिर में गुंडा, भ्रष्टाचारी, लुटारु,व्यभिचारी उम्मीदवार की संख्या बढती गई। संसद जैसे लोकशाही के पवित्र मंदिर मे 170 से जादा दागी लोग गए है। यह इस देश के लोकतंत्र को खतरा हैऽ
पक्ष और पार्टी विरहित जनता के चारित्र्यशिल उम्मीदवार संसद में जाने के बजाऐ घटनाबाह्य चुनाव के कारण जो पक्ष और पार्टीयों के लोग चुनाव लड कर संसद में गए उनका संसद में समुह बन गया और बाहर समाज में भी पक्ष और पार्टी के समुह बन गए। संविधान ऐसे पक्ष और पार्टी के समुह को अनुमती नही देता है। संविधान भारत का वैयक्तिक
चारित्र्यशिलनागरिक को सम्मती देता है। ऐसे पक्ष और पार्टी के समुह के कारण देश में दहशतवाद निर्माण हो गया, समुह के कारण गुंडागर्दी बढ गई है, समुह के कारण भ्रष्टाचार बढते गया है, समुह के कारण देश में हमारे देश मे जॉंती-पॉंती, धर्म, वंश के भेद निर्माण हो कर आपस में झगडे निर्माण हो गए है।
महात्मा गांधीजी कहते थे कि, देश का सर्वांगिण विकास करना है तो गांव का सर्वांग़िण विकास होना जरुरी है। देश का हर गांव बदल गया तो देश अपने आप बदल जाएगा। लेकिन पक्ष और पार्टीयों के समुहने गांव-गांव में पक्ष और पार्टी के ग्रुप बना दिए उस कारण आज हर गांव में पक्ष और पार्टीयों के ग्रुप बन गए। झगडे तंटे बढ गए और गांव का विकास रुक गया।
चुनाव में पैसे की जरुरत पडती है इसलिए पक्ष और पार्टीयोंने इकठ्ठा हो कर सुझाव लिया है कि अपने पार्टी को चुनाव के लिए कोई भी (20,000) बीस हजार रुपए तक डोनेशन देता है उसका हिसाब देने की जरुरत नही है। आज कई पक्ष और पार्टीयॉं लाखों रुपयों का डोनेशन लेते है उस के बीस हजार रुपयों के तुकडे करते है क्योंकी इसका हिसाब नही देना पडता। ऐसे तुकडो को बोगस नाम देते है और हमारे देश का करोडो रुपयों का कालाधान पक्ष और पार्टीयों के माध्यम से सफेद होता है। पक्ष और पार्टीयों को मिलनेवाले पैसों के एक-एक रुपयों का हिसाब देना जरुरी है। इनका स्पेशल ऑडिट होना जरुरी है। लेकिन ऑडिट होता नहीं। हमारे देश में टू-जी स्पेक्ट्रम घोटाला, बोफोर्स घोटाला, हॅलिकॉप्टर घोटाला, कोयला घोटाला, व्यापम घोटाला जैसे करोडो रुपयों के घोटाले होते है। अधिकांश पक्ष और पार्टीयों के समुह के माध्यम से होते है।
संविधान के मुताबीक पक्ष और पार्टी विरहीत भारत का वैयक्तिक चारित्र्यशिल जनता के चुने हुए उम्मीदवार संसद में जाते तो यह करोडो रुपयों के घोटाले नही होने थे। घटनाबाह्य समुह के कारण यह घोटाले हुए है।
देश में जनता का जनताने जन सहभाग से चलाया जनतंत्र लाने के लिए 2011 से हम लोग लोकशिक्षा, लोकजागृती का काम कर रहे है। 2012-13 में पंजाब, राजस्थान, हरियाणा, उत्तराखंड, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश में पांच महिनों में तीन हजार किलोमीटर सफर कर के तिनसौ सभाऐं ली। चुनाव आयोग के साथ चार बार बैठक हुई। चुनाव आयोग से भी पुछा संविधान में पक्ष और पार्टी का नाम ना होते हुए आप पक्ष और पार्टीयों को चुनाव की अनुमती कैसे देते हो। संविधान के मुताबीक जनता का चारित्र्य्शिल उम्मीदवार अथवा वैयक्तिक चारित्र्यशिल उम्मीदवार को ही मान्यता होनी चाहिए।
चुनाव आयोग नें हमारे उत्तरप्रदेश के लोकतंत्र मुक्ती आंदोलन के कार्यकर्ताओं को बुलाकर चर्चा की और देश में पहिली बार निर्णय लिया है कि चुनाव में उम्मीदवारों के फोटो होंगे। सिर्फ नाम और चिन्ह नहीं। लेकिन फोटो के सामने चुनाव आयोग ने पार्टी के चिन्ह भी रखे है इसलिए हमने 18 सितंबर 2015 को चुनाव आयोग से पत्र लिखा है कि संविधान के मुताबीक पक्ष और पार्टी के उम्मीदवारों के सामने पार्टी का चिन्ह है उनको निकालन जरुरी है। क्योंकि वह संविधान विरोधी है। पक्ष और पार्टी के चिन्ह निकालने से संविधान के मुताबीक सिर्फ जनता के उम्मीदवारोंके फोटो रहेंगे। और मतदाता उन फोटो को देखकर चारित्र्यशिल उम्मीदवार को ही अपना वोट देंगे (बटन दबायेंगे)।
देश के जिन नागरिकों को लगता है की 1857 से 1947 तक इन नब्बे साल में अंग्रेज को देश से निकालने के लिए और जनताका जनताने जन सहभाग से चलनेवाला जनतंत्र देश में लाने के लिए लाखो लोगोंने बलिदान किया। उनका सपना पुरा करने के लिए देश में जनतंत्र लाना है। इन विचारों के समविचारी लोगोंने संगठित हो कर आजादी की दुसरी लडाई लडनी होगी। आजादी की पहली लडाई लडने के लिए नब्बे साल लगे। अब इतना समय नही लगेगा। पहले जो बलिदान हुआ वैसे बलिदान की जरुरत नहीं सिर्फ संगठित हो कर धरना, मोर्चा, अनशन, जेलभरो ऐसी लडाई लडनी होगी। देश में गांव-गांव के जनता को जगाना होगा। संगठित करना होगा। बडी संख्या में इस लडाई में शामिल होना है।
जय हिंद। भारत माता कि जय।
भवदीय,
कि. बा. तथा अण्णा हजारे
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